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संस्कृत साहित्य में वेद का स्थान सर्वोपरि है।
भारत में धर्म व्यवस्था का अस्तित्व वेद से ही है। धर्म का निरूपण करने के लिए वेद स्वयं प्रमाण है; इन्हें किसी अन्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं। स्मृति आदि ग्रंथ भी वेद से ही उत्पन्न हुए हैं। इनका मूल स्रोत वेद ही है।





📜 वेद: ज्ञान का एकमात्र स्रोत


प्राचीन परंपरा में वेद को ज्ञान का एकमात्र स्रोत माना गया। विद्यार्थी गुरु मुख से सुनकर ही वेदों का अध्ययन करते थे, इसी कारण इसे 'श्रुति' कहा गया। लोक कल्याण के लिए वेदों की गूढ़ बातों को समझाने हेतु स्मृतियों का निर्माण हुआ। मनुस्मृति, जो सबसे पहली स्मृति है, वेद पर आधारित है। यह सभी नीतियों का वर्णन करती है। अन्य स्मृतियां जैसे गोविल स्मृति, नारद स्मृति, वशिष्ठ स्मृति आदि भी वेदों से प्रेरित हैं।

मनुस्मृति में भगवान मनु ने कहा है:

"श्रुति स्मृत्योर् विरोधे तु श्रुतिरेव गरीयसी।"


इससे स्पष्ट होता है कि यदि श्रुति (वेद) और स्मृति में कोई विरोध हो, तो वेद को ही प्रमाण माना जाएगा।

वेद के दो प्रमुख रूप


वेद दो प्रमुख रूपों में पाए जाते हैं:

1. मंत्र रूप (संहिता): जिसमें मंत्रों का समुदाय होता है।

2. ब्राह्मण रूप: यह संहिता भाग की व्याख्या करता है।

ब्रह्म ग्रंथ तीन प्रकार के होते हैं:

  • ब्राह्मण भाग: यज्ञ के स्वरूप का प्रतिपादन।
  • आरण्यक भाग:  मुनियों एवं ऋषियों द्वारा अरण्य (वन) में किया गया आध्यात्मिक विवेचन
  •  उपनिषद भाग: ब्रह्मज्ञान और मोक्ष का साधन। इसे "वेदांत" भी कहते हैं।

🔑 विशेष बात:

ब्राह्मण गृहस्थों के लिए, आरण्यक वनवासी ऋषियों के लिए, और उपनिषद संन्यासियों के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।

वेद शब्द का अर्थ

वेद शब्द संस्कृत की "विद्" धातु से बना है, जिसका अर्थ है "जानना"।
वेद की व्युत्पत्ति:

"विद्यंते धर्मादय: पुरुषार्था यैस्ते वेदाः।"

सायण का कथन:
"अपौरुषेयं वाक्यं वेद।"


वेद और उनका पर्याय 🌟

आमना, आगम, श्रुति, और वेद—ये सभी वेद के पर्यायवाची शब्द हैं। वेद को "त्रयी" भी कहा जाता है, और इसका कारण वेद की तीन प्रकार की रचना है:


  • पद्य रूप (ऋक): पद्य में रचित वेद मंत्र।
  • गद्य रूप (यजुष): गद्य में संरचित।
  • गीत रूप (साम): संगीत के रूप में।


त्रयी शब्द का अर्थ

कुछ विद्वानों का मत है कि प्राचीन काल में केवल तीन वेद (ऋक, यजुष, साम) थे, इसलिए इसे "त्रयी" कहा गया। लेकिन यह मान्यता सही नहीं है। वास्तव में, वेदों की तीन शैली होने के कारण इसे "त्रयी" कहा गया।


साक्ष्यों का समर्थन

छांदोग्य ब्रह्म और मनुस्मृति में तीनों (ऋक, यजुष, साम) का वर्णन मिलता है।

ऋग्वेद में भी अथर्ववेद का उल्लेख किया गया है।

पतंजलि ने पस्पश आह्निक में स्पष्ट किया:

"चत्वारो वेदाः सांगा सरहस्याः।"


त्रयी और चार वेदों का संबंध

जहां-जहां वेदों के लिए "त्रयी" शब्द का उपयोग किया गया है, वह संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि शैली के भेद के आधार पर है। अतः यह स्पष्ट है कि अथर्ववेद भी तीनों प्रकारों (पद्य, गद्य, और गीत) का हिस्सा है।


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वेद को महर्षि कृष्णद्वैपायन ने चार भागों में विभक्त किया -

1. ऋग्वेद : PDF View/Download 

2. यजुर्वेद : PDF View/Download 

3. सामवेद  : PDF View/Download 

4. अथर्ववेद : PDF View/Download 


वेदों की महत्ता केवल उनकी संख्या में नहीं, बल्कि उनकी शैली और उनके माध्यम से प्राप्त ज्ञान में है। "त्रयी" शब्द उनके स्वरूप और प्रस्तुति की विविधता को दर्शाता है, न कि यह सीमित करता है। वेदों का अध्ययन हमें उनके गूढ़ अर्थ और धर्म के मूल तत्व को समझने में सक्षम बनाता है। 🙏



🌼 निष्कर्ष:
वेद केवल धर्म का आधार नहीं, बल्कि मानवता को सही मार्ग दिखाने वाले सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं। यह ज्ञान, यज्ञ, और मोक्ष का स्रोत हैं। अतः वेदों का अध्ययन और उनके महत्व को समझना हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है।

धर्म, ज्ञान और शांति का प्रतीक वेद ही हैं। 🙏